आज पूरे देश में हरतालिका तीज व्रत मनाया जाएगा। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को सुहागन महिलाएं हरतालिका तीज का निर्जला व्रत रखती हैं और शुभ मुहूर्त में शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इस पूजा में हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनते या पढ़ते हैं।
इसका महत्व मुख्य रूप से विवाहिक सुख, अखंड सौभाग्य और दांपत्य जीवन की मधुरता से जुड़ा है। मान्यता है कि माता पार्वती ने कठोर तप करके इस दिन भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। तभी से सुहागिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और वैवाहिक सुख की कामना से यह व्रत करती हैं। ज्योतिष दृष्टि से इस बार यह तीज अत्यंत शुभ मानी जा रही है क्योंकि कई ग्रहों के संयोग से विशेष योग बन रहे हैं, जिससे आज के दिन का महत्व और भी बढ़ गया है।
हरतालिका तीज का महत्व
हरतालिका तीज व्रत पति की लंबी आयु, वैवाहिक सुख और कन्याओं को योग्य पति की प्राप्ति का व्रत है। साथ ही कुंवारी कन्याएं शिव जैसा पति प्राप्त करने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। इस दिन गौरी शंकर की पूजा अर्चना की जाती है और यह व्रत हस्त नक्षत्र में किया जाता है। हरतालिका तीज का व्रत निर्जला व्रत होता है अर्थात महिलाएं 24 घंटे से ज्यादा समय तक बिना पानी और भोजन के रहती हैं। इस व्रत की कठोरता ही इसे सभी व्रतों से अलग बनाती है।
हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 04:28 ए एम से 05:13 ए एम
अभिजित मुहूर्त: 11:58 ए एम से 12:49 पी एम
विजय मुहूर्त: 02:32 पी एम से 03:24 पी एम
गोधूलि मुहूर्त: 06:50 पी एम से 07:12 पी एम
लाभ चौघड़िया: सुबह में 10:46 ए एम से 12:23 पी एम तक
अमृत चौघड़िया: दोपहर में 12:23 पी एम से 1:59 पी एम तक
हरतालिका तीज प्रदोष काल पूजा का मुहूर्त दोपहर में 3 बजकर 36 मिनट से 5 बजकर 12 मिनट तक
हरतालिका तीज पूजा विधि
तीज के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। फिर घर के पवित्र स्थान पर मिट्टी, चांदी या पीतल की शिव-पार्वती प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके बाद भगवान गणेश के साथ पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है। पूजन में बेलपत्र, धूप, दीप, फूल, मिष्ठान्न, फल, और ऋतुफल अर्पित किए जाते हैं। पूजा के बाद हरतालिका व्रत कथा का श्रवण अनिवार्य माना गया है। इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित होता है, अगर अनजाने में चंद्रमा का दर्शन हो जाए तो स्वमंतक मणि की कथा सुनना आवश्यक बताया गया है। रात भर महिलाएं जागरण करती हैं, भजन-कीर्तन होता है।
हरतालिका तीज व्रत कथा के बारे में
हरतालिका शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, हरत और आलिका। हरत का मतलब है अपहरण और आलिका का अर्थ है सहेलियां यानि सहेलियों के द्वारा अपहरण। दरअसल सती के बाद जब माता पार्वती हिमालयराज के घर पुत्री के रुप में जन्मीं तो उनके बड़े होने पर पिता भगवान विष्णु से उनका विवाह कराना चाहते थे, लेकिन माता पार्वती ने शिव जी को पति स्वरूप में पाने का निर्णय लिया था। जब सहेलियों को इस बात की जानकारी हुई तो वे पार्वती जी को अपने साथ लेकर जंगल में चली गईं और एक गुफा में छिपा दिया।
हरतालिका तीज व्रत कथा, Hartalika Teej Vrat Katha
हरतालिका तीज की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार से है- एक बार भगवान शिव माता पार्वती को उनके पूर्वजन्म की कथा सुना रहे थे। उसमें ही उन्होंने उनके वर्तमान जन्म यानि देवी पार्वती के शिव को पति स्वरूप में पाने की भी कथा सुनाई। भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि सती ने जब आत्मदाह कर लिया तो उनका जन्म हिमालयराज के घर पुत्री के रूप में हुआ। एक दिन नारद जी आपके पिता से मिले और उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु आपकी पुत्री यानि पार्वती से विवाह करना चाहते हैं।
नारद मुनि के इस बात को सुनकर हिमालयराज काफी प्रसन्न हो गए। उन्होंने अपनी बेटी का विवाह विष्णु जी से करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उधर जब इस बात की सूचना पार्वती जी को हुई तो वे दुखी हो गईं। उन्होंने अपनी एक सहेली को बताया कि वे शिव जी को सच्चे मन से पति के रूप में पाना चाहती हैं। अब ऐसा धर्मसंकट पैदा हो गया है कि प्राण त्यागना ही एक मात्र विकल्प बचा है।
ये बातें सुनकर सहेलियां पार्वती जी को महल से बाहर ले गईं। वे एक घनघोर वन में गईं, जहां पर एक गुफा था। उसमें उन्होंने पार्वती जी को छिपा दिया, ताकि उनके पिता उन तक न पहुंच पाएं और भगवान विष्णु से उनका विवाह न हो। उस गुफा में देवी पार्वती ने रेत से एक शिवलिंग बनाया और तपस्या प्रारंभ कर दी। दूसरी ओर उनके पिता अपनी बेटी की तलाश करने लगे।
दिन से सप्ताह, सप्ताह से महीने, महीने से साल व्यतीत होने लगे। देवी पार्वती ने हजारों साल तक कठोर तप, जप, व्रत किया। आंधी, तूफान और बारिश में भी पार्वती जी ने अपना तप नहीं छोड़ा। एक समय ऐसा आया जब उन्होंने अन्न, जल सब त्याग दिया। बेलपत्र के सूखे पत्तों को खाया, शिव जी ने उनकी कठोर परीक्षा ली, इन सबके बाद भी वो अपने पथ से नहीं हटीं।
इतनी कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और देवी पार्वती के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने पार्वती जी को वरदान मांगने को कहा, इस पर देवी पार्वती ने कहा कि हे महादेव! यदि आप प्रसन्न हैं तो वह आपको पति स्वरूप में प्राप्त करना चाहती हैं। इस पर भगवान भोलेनाथ ने उनको मनोकामना पूर्ति के लिए आशीर्वाद दिया।
इसके बाद हिमालयराज भी उस गुफा में देवी पार्वती के पास आ गए, पुत्री को इस अवस्था में देखकर पिता दुखी हो गए। लेकिन पार्वती जी ने सारी घटना बताई तो उन्होंने कहा कि आपका विवाह शिव जी से होगा। उसके बाद वे पुत्री को लेकर महल गए, फिर उन्होंने पार्वती जी का विवाह शिव जी से विधि विधान से कराया।